उज्जैन । विश्व में अकेले राजा महाकाल ही है, जो भक्तों को नित नूतन और अभिनव रूपों में दर्शन देते है। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर लेते है। कभी भांग, कभी चंदन और सूखे मेवे से तो कभी फल और पुष्प से बाबा को श्रृंगारित किया जाता है। राजाधिराज महाकाल अपने भक्तों को 365 दिन में 1825 रूपों में दर्शन देते हैं। दर्शन देने का यह सिलसिला प्रतिदिन भस्मारती से शुरू होकर शयन आरती तक चलता हैं। मंदिर में होने वाली पांच आरतियों में बाबा को अलग– अलग रूप में श्रृंगारित किया जाता है। बारह ज्योर्तिलिंग में से श्री महाकालेश्वर मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जहां प्रतिदिन पांच आरती होती हैं। मंदिर के 21 पुजारी क्रम अनुसार बाबा को आरती के पहले श्रृंगारित करते हैं। श्री महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति अर्थात राजा है। देश के बारह ज्योतिर्लिंग में महाकाल एक मात्र ऐसे है जिनकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता के रूप में की गई। महाकाल का अर्थ समय और मृत्यु के देवता दोनों रूपों में लिया जाता हैं।कालगणना में शंकु यंत्र का महत्व माना गया है। मान्यता है कि पृथ्वी के केन्द्र उज्जैन से उस शंकु यंत्र का स्थान श्री महाकाल का शिवलिंग ही है। इसी स्थान से पूरी पृथ्वी की कालगणना होती रही है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर में आयोजित होने वाली दैनिक आरतियों की समय सारणी:
भस्मार्ती
प्रात: 4 बजे श्रावण मास में प्रात: 3 बजे महाशिवरात्रि को प्रात: 2-30 बजे।
दध्योदन आरती
चैत्र से आश्विन तक प्रात: 7 से 7-45 तक, कार्तिक से फाल्गुन तक प्रात: 7-30 से 8-15 तक
महाभोग आरती
चैत्र से आश्विन तक प्रात: 10 से 10-45 तक कार्तिक से फाल्गुन तक प्रात: 10-30 से 11-15 तक
सांध्य आरती
चैत्र से आश्विन तक संध्या 5 से 5-45 तक कार्तिक से फाल्गुन तक संध्या 5-30 से 6-15 तक
पुन: सांध्य आरती
चैत्र से आश्विन तक संध्या 7 से 7-45 तक कार्तिक से फाल्गुन तक संध्या 6-30 से 7-15 तक
शयन आरती
चैत्र से आश्विन तक रात्रि 10:30 बजे कार्तिक से फाल्गुन तक रात्रि 11-00 बजे
भस्म आरती - एक अनोखी परंपरा
भगवान् महाकाल की विभिन्न पूजाओं तथा आरतियों में भस्म आरती का अपना अलग महत्व है. यह अपने तरह की एकमात्र आरती है जो विश्व में सिर्फ महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में ही की जाती है. हर शिवभक्त को अपने जीवन में कम से कम एक बार भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती में जरुर शामिल होना चाहिए.
महाकाल मंदिर में आयोजित होने वाले विभिन्न दैनिक अनुष्ठानों में दिन का पहला अनुष्ठान होता है भस्म आरती जो की भगवान शिव को जगाने, उनका श्रृंगार करने तथा उनकी प्रथम आरती करने के लिए किया जाता है, इस आरती के बारे में विशेष यह है की यह आरती प्रतिदिन सुबह चार बजे, श्मशान घाट से लायी गयी ताजी चिता की राख से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर छिड़काव करके की जाती है. सर्वप्रथम सुबह चार बजे भगवान् का जलाभिषेक किया जाता है , तत्पश्चात श्रृंगार तथा उसके बाद ज्योतिर्लिंग को चिता भस्म से सराबोर कर दिया जाता है. शास्त्रों में चिता भस्म अशुद्ध माना गया है. चिता भस्म का स्पर्श हो जाये तो स्नान करना पड़ता है परन्तु भगवान शिव के स्पर्श से भस्म पवित्र होता है क्योंकि शिव निष्काम है, उन्हें काम का स्पर्श नहीं है.
शिवमहिम्नस्तोत्रम के अनुसार:
चिताभस्मोलेप स्त्रगापी न्रक रोतिपरीक: अमगाल्या शिव तव भवतु नामैवमखिल तथापि स्मर्तना वरद परम मंगल्मसी ।
हालाँकि चिता भस्म की बात कहाँ तक सत्य है कोई नहीं जानता, मंदिर प्रशासन का वक्तव्य है की पूर्व में यह आरती ताज़ी चिता की राख से ही होती थी लेकिन वर्त्तमान समय में चिता की राख की जगह कंडे की राख का इस्तेमाल होता है. जबकि उज्जैन के स्थानीय निवासियों मानना है की आज भी भस्म आरती ताज़ी चिता की राख से ही सम्पन्न होती है.
यह एक रहस्यमयी, अस्वाभाविक तथा सामान्य अनुष्ठान है तथा पुरे विश्व में केवल उज्जैन महाकाल मंदिर में ही किया जाता है.
भस्म आरती सुबह चार बजे से छः बजे के बिच में की जाती है तथा इसमें शामिल होने के लिए एक दिन पूर्व मंदिर प्रशासन को आवेदन पत्र देकर अनुमति पत्र हासिल किया जाता है उसके बाद ही आप भस्म आरती में शामिल हो सकते हैं.
अनुमति पत्र तभी हासिल किया जा सकता है जब आपके पास अपने फोटो परिचय पत्र की मूल प्रति हो. आरती के एक दिन पूर्व अनुमति पत्र प्राप्त करने के बाद सुबह 2 से 3 बजे के बिच भस्म आरती की लाइन में लगना होता है तब करीब चार बजे भक्त को मंदिर में प्रवेश दिया जाता है. मंदिर में प्रवेश के वक्त एक बार फिर फोटो परिचय पत्र दिखाना होता है
इस आरती में शामिल होने के लिए पुरुषों को सिर्फ धोती और महिलाओं को साड़ी में ही प्रवेश दिया जाता है अन्यथा अनुमति पत्र स्वतः ही निरस्त हो जाता है।
भस्म आरती के दौरान जब ज्योतिर्लिंग पर भस्म न्यौछावर की जाती है उस द्रश्य को देखना महिलाओं के लिए वर्जित है अतः उस समय महिलाओं को घूँघट करना अनिवार्य होता है
बारह ज्योर्तिलिंग में सिर्फ उज्जैन के महाकाल को ही भस्म रमाई जाती है। अघोर मंत्र से भस्म रमाकर श्रृंगार किया जाता है। तड़के 4 बजे से 6 बजे तक होने वाली इस आरती में देश दुनिया के लोग दर्शन करने मंदिर पहुंचते है।
दद्योदक आरती
🕉 भोग आरती 🕉
दद्योदक आरती–
भस्मारती के बाद सुबह 7.30 बजे बाबा महाकाल की दद्योदक आरती की जाती है। इस आरती में मंदिर के शासकीय पुजारी भगवान महाकाल का आकर्षक श्रृंगार कर दही चावल का भोग लगाते है।
भोग आरती–
महाकाल बाबा को प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे भोग लगाया जाता है। मंदिर में पुजारी परिवार की ओर से पहले बाबा का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है, इसके बाद मंदिर समिति की ओर तैयार किए गया भोग महाकाल का अर्पित किया जाता है। इसके बाद समिति द्वारा संचालित अन्नक्षेत्र में श्रद्धालुओं को भोजन मिलता है।
संध्या आरती–
मंदिर में होने वाली चौथी आरती संध्या आरती होती हैं। शाम 7.30 बजे होने वाल इस आरती को संध्या आरती कहा जाता है। आरती के पूर्व शाम 4.30 बजे पुजारी बाबा का आकर्षक श्रृंगार करते है। इसके बाद शाम 5.30 बजे संध्या पूजन किया जाता है। पूजन के ठीक दो घंटे बाद बाबा की संध्यारती की जाती है।
शयन आरती– 19 घंटे दर्शन के बाद बाबा शयन आरती के साथ ही विश्राम की ओर प्रस्थान करते हैं। संध्याआरती के बाद बाबा महाकाल को 10.30 बजे शयन आरती शुरू की जाती हैं। 30मिनट की इस आरती के साथ ही बाबा को गुलाब के फूलों से श्रृंगारित किया जाता है। आरती के बाद बाबा शयन करते है। वहीं अगले दिन सुबह 4 बजे बाबा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए जाग उठते हैं।
तीन किलो भांग से होता है श्रृंगार
राजाधिराज महाकाल की संध्याआरती में प्रतिदिन तीन किलो भांग से श्रृंगार किया जाता है। बाबा को मंदिर समिति के पुजारी संध्या पूजन के पूर्व भांग से श्रृंगारित करते हैं। इतना ही नहीं बाबा को प्रतिदिन आधा किलो सुखे मेवे से आकर्षक श्रृंगार किया जाता हैं।
जैसा की पुराणों में कहा गया है-
आकाशे तारकं लिंगम, पाताले हाटकेश्वरम।
भूलोके च महाकाल, लिंगत्रय नमोस्तुते।
अर्थात, आकाश में तारक लिंग है, पाताल में हाटकेश्वर लिंग हैं तथा प्रथ्वी पर महाकाल लिंग है यह तीनो लिंग ही अति पावन तथा मान्य हैं अतः तीनों लिंगों को नमन.
कहा जाता है:
।अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल का।
।काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।
दिनेश पाल