नवरात्र का पहला दिन,पहले दिन होती है मां 'शैलपुत्री' की पूजा.....


 शारदीय नवरात्रि आज से,जाने किस दिन किस माता की होगी पूजा
 आज से शुरू हो रहे नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के  नौ रूपों की पूजा की जाती है। हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार यह नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन शुक्‍ल पक्ष से शुरू होती है पूरे नौ दिनों तक चलती हैं। 
 घट स्थापना  की विधि 
 नवरात्रि की शुरुआत घट स्‍थापना के साथ ही होती है। घट स्‍थापना शक्ति की देवी का आह्वान है। पूजा का संकल्प लें। मिट्टी की वेदी पर जौ को बोएं, कलश की स्थापना करें,  जल रखें। इस पर कुल देवी की प्रतिमा या फिर लाल कपड़े में लिपटे नारियल को रखें और पूजन करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलता रहे।


नवरात्र में इन नौ देवियों का पूजन
: पहले दिन- शैलपुत्री
: दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी
: तीसरे दिन- चंद्रघंटा
: चौथे दिन- कुष्मांडा
: पांचवें दिन- स्कंद माता
: छठे दिन- कात्यानी
: सातवें दिन- कालरात्रि
: आठवें दिन- महागौरी
: नवें दिन- सिद्धिदात्री



सर्वप्रथम शैलपुत्री 


मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है।हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। 


 सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कथा है। 


क बार  दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया । इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानीं और बार बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। सती के ना मानने की वजह से शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी।


 सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।  
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और आपने आपको को यज्ञ जलाकर भस्म कर लिया। इस  दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। 
 पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। 
 मंत्र
1. ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
2. वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
3. वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
4. या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 


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