गोवर्धन पूजा आज ,पूजन से भगवान श्री कृष्ण की कृपा सदैव बनी रहती है
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा करने का विधान बताया गया है। देशभर में आज गोवर्धन पूजा की जाएगी।मूलतः यह प्रकृति की पूजा है जिसका आरम्भ श्री कृष्ण ने किया था। इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पूजा करने से व्यक्ति पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा सदैव बनी रहती है। गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है।
गोवर्धन पूजा की विधि-
गोवर्धन पूजा करने के लिए आप सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं। इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें। कहा जाता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे मन से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है।
गोवर्धन पूजा मुहूर्त-
सोमवार 28 अक्टूबर 2019 को
गोवर्धन पूजा सायाह्नकाल मुहूर्त- दोपहर 03.27 से 05.41 बजे तक
अवधि- 02 घंटे 14 मिनट
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ- 28 अक्टूबर को सुबह 09.08 बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 29 अक्टूबर 2019 को शाम 06.13 बजे तक
गोवर्धन पूजा की कथा:-
ब्रजवासी पहेले देवों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा करते थे। ब्रज के लोगों का मानना था कि पूजा करने से इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे, फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा। ब्रज के लोगो को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहाँ वर्षा होती है और सबको इंद्र को बलशाली गोवर्धन का पूजन करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें। भयावह बारिश से भयभीत होकर सभी ब्रजवासी भगवान श्रीकृष्ण के पास गए। भगवान श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा। सभी ब्रजवासी अपने पशुओं समेत गोवर्धन के पास में आ गए। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका अंगुली (हाथ की सबसे छोटी उंगली) पर उठाकर छाते-सा तान दिया। निरंतर सात दिन तक बादल बरसते रहें किन्तु भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इन्द्रदेव असमंजस में पड़ गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है। सत्य जान इंद्रदेव भगवान ज़ श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। श्रीकृष्ण के इन्द्रदेव को अहंकार को चूर-चूर कर दिया था अतः में उन्होंने इन्द्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमितल पर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाए। तभी से यह पर्व प्रचलित है और आज भी पूर्ण श्रद्धाभक्ति से मनाया जाता है|