महर्षि वाल्मीकि जयंती : कैसे बने डाकू से साधु महर्षि वाल्मीकि


रामायण के रचयिता ज्ञानी महर्षि वाल्‍मीकि का जन्‍मदिवस देशभर में साथ मनाया जाता है। वैदिक काल के महान ऋषि वाल्‍मीकि पहले डाकू थे। लेकिन जीवन की एक घटना ने उन्हें बदलकर रख दिया। 
महान ग्रंथ रामायण की रचना की थी। आज उनकी जयंती है।  वे राम की शरण में गए तो ऐसी राम की धुन लगी कि उन्होंने एक ग्रंथ रचना कर डाली। भगवान राम पर लिखी ये पहली काव्य रचना कही जाती है। संस्कृत में लिखी इस काव्य रचना में 24,000 श्लोक हैं जो 7 'कांड' में विभाजित हैं।


वो घटना:
वाल्मीकि से पहले उनका नाम रत्नाकर हुआ करता था। रत्नाकर जंगल से गुजरने वाले लोगों से लूट-पाट करता था।
एक बार जंगल से जब नारद मुनि गुजर रहे थे तो रत्नाकर ने उन्हें भी बंदी बना लिया। नारद ने उनसे पूछा कि ये सब पाप तुम क्यों करते हो? इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया, 'मैं ये सब अपने परिवार के लिए करता हूं । नारद ने पूछा क्या तुम्हारा परिवार तुम्हारे पापों का फल भोगने को तैयार है। रत्नाकर ने निसंकोच हां में जवाब दिया।


तभी नारद मुनि ने कहा इतनी जल्दी जवाब देने से पहले एक बार परिवार के सदस्यों से पूछ तो लो। रत्नाकर घर जाकर परिवार के सभी सदस्यों से पूछा कि क्या कोई उसके पापों का फल भोगने को आगे आ सकता है? सभी ने इनकार कर दिया। इस घटना के बाद रत्नाकर काफी दुखी हुआ और उसने सभी गलत काम छोड़ने का फैसला कर लिया। उस के बाद वे राम की शरण मे चले गए। आगे चलकर रत्नाकर ही महर्षि वाल्मीकि कहलाए।


वाल्मीकि रामायण का दोहा:
 दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।'
महर्षि वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं


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